“बाल मजदूरी/Child Labour”– YMPH DAILY CHALLENGE

05/03/2021 की प्रतियोगिता का विषय है “बाल मज़दूरी/Child Labour”। हमसे जुड़े हुए प्रतिभावान कवियों के कविताओं को पढ़िए । प्रेम, डर, और अंधकार ऐसे कई मायने होंगे जो कवियों के दिल को भावुक रखते है । ऐसी भावुकता का हम आदर करते है और उनकी भावनाओं को निपुण बनाना ही संकल्प है हमारा । हम हर रोज किसी न किसी विषय पर अपने व्हाट्सएप्प ग्रुप में Daily Challenge प्रतियोगिता के माध्यम से लेखकों तथा कवियों को उनकी बातों को कलम तक आने का मौका देते है । और जो सबसे अच्छा लिखते हैं । आप उनकी लेख इस पेज पर पढ़ रहे है

अगर आप भी एक कवि या कहानीकार है और अपनी रचना को पन्नो पर उतारना चाहते है तो हमारा व्हाट्सएप्प ग्रुप अभी जॉइन कीजिये ।

First

The Unknown Girl

“बाल मजदूरी”

नन्ही हाथों से किताबें छीन
छाले थमा गई उसे मजबूरी
दो वक्त का खाना कमाने के लिए
जिन हाथों ने की थी बाल मजदूरी,,

क्या करेगा जानकर वो कानून
जो उसकी भूख ना मिटा सके
किताबों की जगह रद्दी पसंद है उसे
जिसे बेचकर वो दो पैसे कमा सके,,

जिंदगी की उलझनों में
कभी वो ईंट तोड़ता मिलेगा
कभी दर्द के आंसू पीकर
हर पल वो मजबूत बनता दिखाई देगा,,

अपने सपनों को पूरा करने के लिए
वो हर पल खुद से लड़ता है
कंधा बहुत मजबूत है वो
जो बाल मजदूरी करता है,,

वक्त और हालात से लड़ रहा है
वो आज मुसीबतों को अपना हथियार बनाके
झुकेंगे कल कदमों में इसके ये सब
इसका आज बोल रहा है…!!

Insta- the_unknowngirl1408

Second

Rupam

“बाल मज़दूरी”

परी मार गरीबी की ऐसी तिनका-तिनका बिखर गया,
चंद पैसों के खातिर बच्चों का मासूम जीवन बिछर गया॥

जिन कन्धों पे बैग उठाऐ स्कूल की ओर बढ़ना था,
अपने सपनों को पुरा करने के खातिर उसे भी तो पढ़ना-लिखना था॥

दो वक़्त की रोटी ने बच्चों को बाल मज़दूरी के ले मजबूर किया,
बेबसी इतनी थी जीवन में उसने अपना सारा बचपन ही भुला दिया॥

हमारे समाज की जड़ो को खोकला करता ये बीमारी कब जाएगा,
कब होगा एक नया सवेरा ये कलंक मिट जाएगा॥

सभी बच्चों के लिए हो एक सा जीवन कुछ ऐसा कदम उठाना है,
नये समाज की नीव रखकर इस संसार को बेहतर बनाना है।।

Third

Gunjan Kumari

बाल मज़दूरी
बाल मजदूरी ,इस पर है रोक जरूरी
नन्हें -नन्हें बालक जो कहलाते देश की शान है
क्यों उनके सिर पर भारी बोझ -सा सामान है
दाने -दाने को हुए मोहताज
क्यों मजदूरी ही है इनकी आस
अभी तो बचपन शुरू ही हुआ
खेल -कूद तो बाकी है
अब्दुल कलाम जैसे बड़े सपने
आँखों में सजोने काफी है
शिक्षा है इनका जन्मसिद्घ अधिकार
फिर क्यों इससे वंचित है वे आज
क्या ये वही भारत है जिसका सपना
लाल बहादुर शास्त्री जी ने देखा था
हर बच्चा पढ़े -लिखे ऐसा उन्होने सोचा था
पर यहाँ तो बच्चा बाल -मजदूरी को लाचार है
उसपे पड़ी गरीबी की जो मार है
चाह उसकी भी है पढ़ने -लिखने की
सपने सजोने की, खेलने -कूदने की
उनके इस सपने की जिम्मेदारी है हमारी
इसलिए बाल मजदूरी पर है रोक जरूरी ।

Insta -gunjan.k.524

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