Er.Sachin Pratap Singh
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शिव शंकर भोले
मै ही प्रारम्भ और अंत भी मै हू
मै ही ज्ञानी मै अज्ञानी
मै ही मोह मै ही माया
मै चाहूं तो पलट दू इस दुनिया का काया
मै ही शिव मै ही शंभू
मै ही बनाऊ मै ही ख़तम कर दु
मै ही धरती और आकाश भी मै हू
मैं रचैयता और विनाश भी मै हू
पाप बढ़ी जो कलयुग में तो इसका सर्वनाश भी मै हू
रूद्र रूप धारण जो कर लू त्राहि त्राहि मच जाता है
मेरे क्रोध के आगे हर कोई झुक जाता है
मै ही प्रारम्भ और अंत भी मै हू
Cdt.Ishani Smriti Sinha
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मातृभाषा हिंदी….
स्वर और व्यंजन से बनी,
सुंदर अक्षरों की वर्णमाला।
मोतियों से शब्द अलौकिक,
जैसे कोई सुरम्य माला।
हमारी संस्कृति की विविधता,
हमको देती है विचार महान।
ताकत है एकता इसकी,
ये है मातृभूमि के ज्ञान – संस्कार।
ना केवल राष्ट्रीय अपितु,
अंतरराष्ट्रीय है महत्व जिसका।
है हमारी मातृभाषा हिंदी ऐसी,
विख्यात जगत में है बोल इसका।