16/01/2021 की प्रतियोगिता का विषय है जिंदगी की डगर पर/Way Towards Life। हमसे जुड़े हुए प्रतिभावान कवियों के कविताओं को पढ़िए । प्रेम, डर, और अंधकार ऐसे कई मायने होंगे जो कवियों के दिल को भावुक रखते है । ऐसी भावुकता का हम आदर करते है और उनकी भावनाओं को निपुण बनाना ही संकल्प है हमारा । हम हर रोज किसी न किसी विषय पर अपने व्हाट्सएप्प ग्रुप में Daily Challenge प्रतियोगिता के माध्यम से लेखकों तथा कवियों को उनकी बातों को कलम तक आने का मौका देते है । और जो सबसे अच्छा लिखते हैं । आप उनकी लेख इस पेज पर पढ़ रहे है अगर आप भी एक कवि या कहानीकार है और अपनी रचना को पन्नो पर उतारना चाहते है तो हमारा व्हाट्सएप्प ग्रुप अभी जॉइन कीजिये ।
First
Shivendra Pratap Singh
जिन्दगी के डगर पर हसीं,
एक हमसफ़र मिल जाय तो क्या बात होगी,
साथ चलें यूं ही सफर पर जिंदगी भर,
तो क्या बात होगी,
गिला शिकवा ना हो किसी से कोई,
गम एक दूजे का यूं ही बाटतें चलें उम्र भर,
तो क्या बात होगी,
तिश्नगी इस कदर हो अपनी चाहत में कि,
देखकर चांद भी थोड़ा जल जाए,
तो क्या बात होगी,
दरकार बाकी ना रहे कुछ भी हासिल करने को,
ये मोहब्बत,रिश्ता अपनी फलक से जोड़ आए,
तो क्या बात होगी,
जिन्दगी के डगर पर हसीं,
एक हमसफ़र मिल जाय तो क्या बात होगी,
Ig-@shivasinghksh
Second
Avijit Basu Roy
Way towards life
The trail of life is a strange one,
There is blazing sun and scorching heat,
Rough, hot sands,
And swaths of naked, barren land,
Stretched, towards the horizon.
Yet, there are shadowy nooks,
Rivulets, streams, lush green vegetation,
Offering shelter, oasis and refuge.
What seems never ending, at a close-up,
Turns out to be a mere bend at the long shot.
The journey often tires the wayfarer,
Only to refresh him, at an unexpected bend.
Never predictable, it holds its cards, under its sleeves.
The ideal wayfarer, is a forever wayfarer,
Always, a curious soul, he keeps surging forward.
Ig-bravijit@ khamkhyali
Third
Divya Saxena
ज़िंदगी की डगर पर
ज़िन्दगी की डगर पर, बनकर ज़िन्दगी एक अजनबी मिला था,
वक्त बीतता गया, उम्र बढ़ती गई…
वो अजनबी कब हमसफ़र, हमराह बनता गया पता ही ना चला…
यूं तो एक दूसरे की आंखों से कई जाम पिए थे हमदोनों ने,
नशा हमें ही कुछ खास हुआ ये पता ना चला…
वक्त बिता तो कुछ यूं अज़ीज़ हुए हम उनके,
पहले ख़्वाब, फिर ख्याल, फिर रूह में उतरे उनके,
जान जान कहकर जो लब थकते नहीं थे कभी,
उन लबों से कब हमारा नाम उतरा पता ही ना चला…..
साकी बन जाम पर जाम भी पिलाए थे उन्होनें,
दीवानगी की हद ये रही कि, ताउम्र उसके नशे में घूमे हम,
उसके एक इशारे पर भी जान दे देते हम पर,
बिन कुछ बोले वो कब गैर हुए पता ही ना चला….
वो कहता तो था हमारी आंखें बहुत कुछ बयान करती हैं,
फिर जाने क्यों इनसे बहते किसी अश्क का उन्हें पता ना चला….
Ig-@diaa_writes06
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