11/02/2021 की प्रतियोगिता का विषय है “मुसाफिर” / “Traveller”। हमसे जुड़े हुए प्रतिभावान कवियों के कविताओं को पढ़िए । प्रेम, डर, और अंधकार ऐसे कई मायने होंगे जो कवियों के दिल को भावुक रखते है । ऐसी भावुकता का हम आदर करते है और उनकी भावनाओं को निपुण बनाना ही संकल्प है हमारा । हम हर रोज किसी न किसी विषय पर अपने व्हाट्सएप्प ग्रुप में Daily Challenge प्रतियोगिता के माध्यम से लेखकों तथा कवियों को उनकी बातों को कलम तक आने का मौका देते है । और जो सबसे अच्छा लिखते हैं । आप उनकी लेख इस पेज पर पढ़ रहे है
अगर आप भी एक कवि या कहानीकार है और अपनी रचना को पन्नो पर उतारना चाहते है तो हमारा व्हाट्सएप्प ग्रुप अभी जॉइन कीजिये ।
First
The Unknown Girl
“मुसाफिर”
करता है वो रास्तों से प्यार
उसे मंजिल का पता पूछना नहीं आता
चलता रहता है मलंग होकर
जो पूछा क्या है ठिकाना उसका
तो कहेगा
एक जगह ठहर जाए उसे ऐसा आशियाना बनाना नहीं आता
लाखों की भीड़ से दूर
सुकून की मदहोशी में चूर
मुसाफ़िर नाम लिए फिरता है
बहती हवा सा है मिज़ाज
जिसका ठिकाना आज यहां तो कल वहां दिखाई पड़ता है
धुंधली राहों में
खुद धुआ सा दिखता है
खुले आसमान का पंछी है वो
उसे घोंसलो में टिकना नहीं आता
हा थक कर रुकता हैं वो भी
तारों की छत के नीचे
पाव में उसके भी छाले पड़ते हैं
पर मुसाफिर है वो
अपने दर्द भुला लेता हैं
अनजान अपनों को मुस्कान देकर।
Insta- the_unknowngirl1408
Second
Shivangi Jain
एक मुसाफिर चला जा रहा था कुछ गुनगुनाते हुए
नशे की झोंक में
चुभ गया कांटा पैरों में
ना निकली आह ना हुआ दर्द चेहरे पर मुस्कुराहट लिए हुए
सर्द हवाएं महकी फिजाएं रूहानियत सा सफर
पंछी बुलाएं
आग की लपटे बदन जलाएं
शर्म न हया ऐसी है अदाएं
उस मुसाफिर की कहानियां क्या बताएं
वह दृश्य आबसार सा
छाया खुमार सा
हसरते बेशुमार
दिल ए बेकरार
एक मुसाफिर चला जा रहा था रास्ते में कुछ गुनगुनाते हुए
Insta-
Zindagi gulzar hai 1188
Third
Mehak Muner
मुसाफिर:
ए बेखबर, ए बेजुबान,
ना जाने चले गये तुम किस जहाँ।
मुसाफिर नहीं थी, बनती जा रही हुं,
चले भी आओ कब से बुला रही हुं।
जिस मौड़ पर छोड़ गये तूम मुझे,
हैं मेरे कदमू के निशान वहीं, मिलेंगे तुम्हे।
रात से कुच्छ बात करनी है,
अकेले नहीं तुम्हारे साथ करनी है।
तुम्हारी याद ने बना दिया मुसाफिर,
लौट आओ, ना बन जाऊं मैं काफिर।
सूरज भी ढल गया, ढल गयी ये शाम,
तुम अगर कह दो, कर दू मै खुद्को तुम्हारे नाम।
येह वक़्त भी चला जाएगा,
मुसाफिर थे, और रहो गे कहता जाएगा।
मुसाफिर थे नहीं तुमने बना दिया,
नहीं बन्ना था मेरा तो क्यूं गिला दिया।
Special Write-up
Avijit Basu Roy
Traveler
He is a traveler at heart,
Through the jubilations and heart breaks ,
He forges ahead.
The roads before him twist and turn.
Scenes whiz past,
Faces fade away.
The road before him burns,
The trail behind him blazes.
He is on a never ending forward march.
He takes solace at times,
A brief blissful detour through the shadowy nooks,
Only to surge ahead the next moment
To a hazy frontier.
Some strange bugs buzzes ceaselessly in his blood,
An eerie, strange tune of relentlessness,
To quench his boundless quest,
He must keep moving on.
Insta-
bravijit@khamkhyali
Muskan
मुसाफिर :
इक कारवां चलता जा रहा है।
कुछ जाने अनजाने बनते जा रहे है।
कुछ अनजानो से जान पहचान बढ़ती जा रही है।
मुसाफिरो की इक भीड़,
विभिन्न मंजिलों की ओर रूख करती जा रही है।।
इक कारवां चलता जा रहा है।
कुछ बिता रहे समय खुशहाली में मगन हो।
कुछ बस काट रहे है लम्हें,
जैसे आँखों में दबायें हो आँसू।
मुसाफिरो का इक समुह,
बन रहा है परिवार सा,
तो इक समुह बस लग रहा है भीड़ सा।।
इक कारवां चलता जा रहा है।
कुछ अपनों से बना, कुछ परायों से मिला,
कुछ खुद से सिखा, कुछ जिंदगी से सिखायी,
हर कड़वी – मीठी बात लिये,
हर गलत – सही का अंदाज लिये,
अनजानी सड़कों पर इक बार फिर,
बन मुसाफिर यूँ बढ चले है ये कदम,
मंजिल की ताक में।।
Ig- confused_yaara