06/04/2021 की प्रतियोगिता का विषय है “हुनर/Skill”। हमसे जुड़े हुए प्रतिभावान कवियों के कविताओं को पढ़िए । प्रेम, डर, और अंधकार ऐसे कई मायने होंगे जो कवियों के दिल को भावुक रखते है । ऐसी भावुकता का हम आदर करते है और उनकी भावनाओं को निपुण बनाना ही संकल्प है हमारा । हम हर रोज किसी न किसी विषय पर अपने व्हाट्सएप्प ग्रुप में Daily Challenge प्रतियोगिता के माध्यम से लेखकों तथा कवियों को उनकी बातों को कलम तक आने का मौका देते है । और जो सबसे अच्छा लिखते हैं । आप उनकी लेख इस पेज पर पढ़ रहे है
अगर आप भी एक कवि या कहानीकार है और अपनी रचना को पन्नो पर उतारना चाहते है तो हमारा व्हाट्सएप्प ग्रुप अभी जॉइन कीजिये ।
First
Shabeena Khatoon
“हुनर”
दुनिया का बेहतरीन हुनर तो,
सिर्फ़ मां ही रखती हैं।।
जो अपने दर्द-व-गम भुलाकर,
घर का कोना-कोना महकाती हैं।
जो अपनो की खुशी में खिलखिलाती हैं,
और अपनो के दुख में अपनी पलके भिगाती हैं।।
दुनिया का बेहतरीन हुनर तो,
सिर्फ़ मां ही रखती हैं।।
जो ख़ुद भूखी रह सकती हैं।
लेकिन अपनो का पेट भरने के लिए,
लोगो के हज़ार ताने भी सुन सकती हैं ।।
दुनिया का बेहतरीन हुनर तो,
सिर्फ़ मां ही रखती हैं।
जो खुद का बदन गर्म होने पर…
बेटा! चूल्हे के पास बैठी थी,
इसलिए गर्म हैं, कहकर टाल देती हैं ।
लेकिन बच्चों को अगर एक खरोच भी आए,
तो पूरे कायनात को सिर पर उठा लेती हैं।।
दुनिया का बेहतरीन हुनर तो,
सिर्फ़ मां ही रखती हैं।
सिर्फ़ एक ज़िद पूरी करने लिए ही, मां
पापा के सामने ज़िद्दी बन जाती हैं।
और अगर बच्चों की खुशी का सवाल हो, तो मां
खुदा से भी लड़ जाती हैं।।
अपनी चाहत भुलाकर,
ता उम्र दूसरो के लिए जीती हैं।
ऐसा हुनर तो सिर्फ मां ही रखती हैं।।
Second
Gunjan Kumari
हुनर
देश के हर एक कोने में
हुनरबाज़ों का निवास है
जिसे तलाशती निगाहें
वो हुनर लाजवाब है
यूं तो हुनर हर इंसान में बसता
लेकिन हर एक इंसान में अलग है होता
कुछ को मिलती पहचान
तो कोई गुमनाम है रहता
हुनर को पहचानना
हर किसी के बस की नहीं है बात
जो पहचान ले वो मेहनत
करता है दिन – रात
हुनर को तराशने वाले
जौहरी तो बहुत हैं
लेकिन हर एक इंसान को
जौहरी मिल जाए तो हो क्या बात!
कुछ सीखते हैं तो कुछ सिखाते हैं
ये हुनर बड़े काम आते हैं
इसी की बदौलत
हम पहचान बना पाते हैं
Third
Savita Sawasia
हुनर
मुझमें हुनर नहीं है कोई ख़ास
एक चेहरे के अंदर छुपा चेहरा, नहीं है मेरे पास….
मेरी लेखनी करती है,
दूर जीवन का अंधकार
इंसानी दुनिया पर नहीं रहा,
अब मुझे ऐतबार
एक झंकृत सी रागिनी है,
मेरे अभ्यन्तर
शब्दों को पिरोने का हुनर,
है मेरे अंदर…..
है तहज़ीब मुझमें इतनी,
कि समझ पाऊँ हर मंज़र
शशिबाला सी पावन,
मृग-नयनी सी हूँ मनोहर
दग्ध हृदय है मग़र,
अभिलाषित मेरे अधर
है नाज़ मुझे कि
पाया मैंने शीतलता का हुनर……
शबनम की बूंदें जब,
सहरा को छू गई
चिर परिचित सी स्मृति,
सुरभि सी महक गई
ख्वाबों का जो महल,
हो गया था जर्जर
प्रेम प्रसूनों से उसे सजाने का
है मुझ में हुनर…..
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