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Childhood/YMPH-Daily-Writing-Challenge

30/07/2024 की प्रतियोगिता का विषय है “ Childhood” हमसे जुड़े हुए प्रतिभावान कवियों के कविताओं को पढ़िए । प्रेम, डर, और अंधकार ऐसे कई मायने होंगे जो कवियों के दिल को भावुक रखते है । ऐसी भावुकता का हम आदर करते है और उनकी भावनाओं को निपुण बनाना ही संकल्प है हमारा । हम हर रोज किसी न किसी विषय पर अपने व्हाट्सएप्प ग्रुप में Daily Challenge प्रतियोगिता के माध्यम से लेखकों तथा कवियों को उनकी बातों को कलम तक आने का मौका देते है । और जो सबसे अच्छा लिखते हैं । आप उनकी लेख इस पेज पर पढ़ रहे है

The theme of the competition for 30/07/2024 is “ Childhood”. Read the poems of the talented poets associated with us. Love, fear, and darkness are the many meanings that keep the hearts of poets emotional. We respect such sentiments and it is our resolve to make their feelings adept. Every day, we give an opportunity to writers and poets to put their thoughts to pen through the Daily Challenge competition in our WhatsApp group on different Topic. And those who write best. You are reading those article on this page.

Childhood

बचपन:-
बचपन का एक अनोखा अंदाज़ था,
कहाँ गए वो सुन्हेरे दिन,
जब सवेरे माँ नींद से जगाया करती थी,
हम उठकर रोते थे, विद्यालय न जाने के लिए,
वह हमें हँसाया करती थी,
जब हम रूठ जाते वह,
हमें मनाया करती थी,
गर्मियों की छुट्टियों में,
वो नानी- दादी के हाथों का आचार,
लगता था हमें प्यारा सा उपहार,
वो छत पर जाके छुपके से आम खाना,
फ़िर हमें आम खाते देख पकड़े जाना,
लगता था बड़ा सुहाना,
फ़िर शाम में,
ठंडे- ठंडे, शरबत / गोले का मज़ा उठाना,
दादा- नाना जी के साथ रात में बाहर जाकर,
आइस- क्रीम का मज़ा लेना,
त्योहारों पर नानी की घर जाकर,
सबसे खर्ची/ उपहार लेना,
भाईयों / बहनो के साथ मस्ती करना,
साथ में मिलकर खेल खेलना,
एक साथ बैठकर रसोई खाना,
खाना खाने पर नखरे करना,
फ़िर नानी / मामी के हाथ का कुछ हटके खाना,
फ़िर शाम में गरमा- गरम नास्ता खाना,
अपने भाई – बहन से छुपके चॉकलेट खाना,
फ़िर रात में छत पर जाकर,
छोटे भाई- बहन को भूत की कहानी सुनाकर डराना,
फ़िर डर के मारे, मुँह पर चादर ओढ़ के सो जाना,
सुबह होते ही, वो शोर करना,
और ये तय करना की आज कहाँ है जाना,
फ़िर सबका एक साथ मिलकर बाहर घूमने जाना,
रास्ते में सबका मस्ती करना,
पर उनमे से एक जाने का सो जाना,
दूसरे जने का सबको परेशां करना,
किसी को बार – बार खाना,
यह सब मज़ेदार कहानी का चलना,
पापा/ मामा लोगों का रास्ते में गाड़ी रोक कर चाय पीना,
बचपन का एक अनोखा अंदाज़ था,
सर्दियों में विद्यालय जाने पर सुबह न नहाना,
माँ/ दादी का वो कड़वा काडा पीना,
विधालय में कक्षा में जाकर सो जाना,
कक्षा के बीच टिफिन खोलकर नास्ता खाना,
गृह कार्य न करके जाने पर अध्यापक से सज़ा मिलना,
कक्षा से बहार जाकर, खिड़की से अपने दोस्त को भी बाहर बुला लेना,
फ़िर दोस्तों के साथ कक्षा के बाहर सज़ा मिलने पर, भी मस्ती करना,
रिसेस में सब दोस्तों का मेरे टिफिन में से खाना,
मैदान में जाकर खेल खेलना,
दौड़ते – दौड़ते चोट लगना,
जिस दिन स्वस्थ्य ठीक नहीं हो,
उस दिन विद्यालय के आधे मे से ही घर जाना,
बुखार का बहाना बनाकर विद्यालय से छुट्टी लेना,
परीक्षा आने पर सबका एक जुट होकर तैयारी करना,
दोस्तों के घर पड़ाई का बहाना करके जाना,
वहाँ जाकर खूब सारी मस्ती करना,
परीक्षा खत्म हो जाने पर,
दोस्तों के साथ मज़े करना,
परीक्षा का परिणाम आने पर वो अलग सा डर होना,
बचपन का एक अनोखा अंदाज़ था,
बारिश के मौसम में,
अचानक से आधे दिन में विद्यालय से छुट्टी मिलना,
दूसरे दिन सुबह विद्यालय के लिए तैयार हो, फ़िर विद्यालय का बंद होना,
उसी वक़्त दूरदर्शन देखना, टिफिन का नास्ता खाना,
पुरा दिन मस्ती करना,
बारिश पड़ने पर साइकिल चलाना,
बारिश में बिग जाना,
पन्ने से नाव बनाकर, बारिश के पानी में चलाना,
कीचड़ में खेलना,
शाम में गरम – गरम चाय पकोड़े खाना,
बचपन का एक अनोखा अंदाज़ था,
जन्मदिन पर सारे दोस्तों को बुलाना,
केक काटना, साथ में खाना,
उपहार के लिए ज़िद करना,
खिलौने खरीदना,
गुब्बारे फोड़ना, खूब सारी मस्ती करना,
केक मुँह पर लगाके जोकर बनाना,
घर- घर खेलना,
गुड्डे – गुड़िया की शादी कराना,
दुपट्टे में से साड़ी ओढ़ना,
बचपन का एक अनोखा अंदाज़ था,
न जिम्मेदारियां का भोज था,
ना भविष्य की फिक्र थी,
ना घर की चिंता थी,
ना पैसों का सोच था,
बचपन का एक अनोखा अंदाज़ था
_ Kashish Chandnani

कभी मंजिल से पहले रुकना,
कभी संस्कारों के सामने झुकना,
अपने शौक भी किनारे रखना पड़ता है,
समझदारी के दौर में ना जाने क्या – क्या करना पड़ता है।

खुशी में जोर से चिल्लाना,
जरा सी बात पर रोना धोना
सब छूट जाता है,
दिल का मासूम कौना फिर
रूठ जाता है।

कोई रूठे तो माफ़ करते थे,
कुछ गलत हो तो साफ करते थे,
आखिर क्यों वो रबड़, पेंसिल
वाली शिक्षा नहीं होती
आज जिद करने की भी
फिर इक्छा नहीं होती।

वो गुजरा बचपन देख लगता
काश हम भी फिर बच्चे हो जाते,
इस ढलती उम्र में पता
नहीं क्यों दिल कच्चे हो जाते।

स्वीटी जैन ‘दिल से’
स्वरचित एवं मौलिक

बचपन
=====
थी कागज़ की अपनी वो कश्ती
पगडंडियों पर दौड़ता न थकता हुआ जो तन,
रिमझिम फ़ुहारों से बरसता हुआ अपनी धुन में सावन
और मुस्कुराते हुए जो बीत गया, वो प्यारा बचपन था

वो ऊंची डाल थी, थी उस पर चढ़ने की बात
परिन्दो सा स्वच्छन्द आकाश में उड़ता हुआ मन
खिलखिलाता, चहकता, शोर मचाता हुआ आंगन
और मुस्कुराते हुए जो बीत गया, वो प्यारा बचपन था

लुक्का छुपी रस्सा कस्सी में गुजरती शामे
बस अपनी ही दुनिया में मगन हर एक क्षण
बेफिक्री भरा हर लम्हा लगता कितना ही लुभावन
और मुस्कुराते हुए जो बीत गया, वो प्यारा बचपन था

Saritta Garii
insta I’d- sariita_writes017

वो दिन , वो पल ,वो वक्त अब बहुत याद आते है
न जाने कब बचपन इतने जल्दी बीत जाते है ।
वो दोस्त , वो स्कूल ,वो मस्ती अब बहुत याद आते है ,
न जाने क्यों सब इतने जल्दी छूट जाते है ।
वो दोस्तों से लड़ाई करना ,
वो स्कूल में खेलखुद करना ,
वो क्लास में पढ़ाई के समय गप्पे मरना ,
छुट्टी होते ही दौड़ते हुए घर को आना ,
न जाने क्यों अब वो सब याद आते है ।
वो छोटी छोटी बातों पे जिद्द करना ,
पापा के कंधे पर बैठ के मेला घूमने जाना ,
मम्मा की गोदी में उनकी लोरी सुन ते हुए सोना ,
वो सब बस खूबसूरत यादें बन कर ही रह गए है ,
न जाने वो बचपन क्यू इतने जल्दी बीत जाते है ।

Dipti Nayak
Ig dipti_writes

Childhood
When I came into this world, brought a smile to my family’s faces.
Being the smallest kid in my family, I was brought up with a lot of love from all.
My grandfather used to call me Baby till the date, he was alive.
My grandmother used to make me two ponies.
My father made me sit on his shoulder and roam the whole house.
My mother makes me look like a doll always.
Me and my brother used to play with a to me
My sister and I played with doll sets.
The golden period of my childhood was very precious to me, my most memorable memories are with my grandfather, but he is no more. The unforgettable and selfless love, I got from everyone. When we even got hurt on the floor, the floor was blamed and beaten for us. No tension, worry, or stress was there in the childhood. I loved my childhood and want to live that again with all my loved ones.
When I was a kid, I wanted to grow up soon, but now I think about why I became young.
Love you my childhood and miss you.
Anushka Pandey

// सुनहरा बचपन //
*******

सुबह आँखे मलते उठते खटिये से हम अपने,
सबसे पहले माँ को हम लाड जताते,
माँ जब मुंह धोकर आने को कहती,
इधर उधर भाग मैं माँ को परेशान करती,
माँ पकड़ मुझे मेरा मुंह धुलाती,
मुझे स्नान करवाकर कर,
मेरे सामने बैठ वो मुझे नाश्ता करवाती,
माँ जब अपने कामों में व्यस्त हो जाती ,
मौका पाते ही मैं घर से बाहर निकल जाती।
सुबह-सुबह होती हल्की बारिश की फूहर,
जब पड़ती गांव की माटी में,
सोंधी महक हवा उड़ा ले चली अपने संग ,
पेड़-पौधे झूमने लगते ,
खेत खलिहान लहलहाने लगते,
तन पर जब आती कुछ बारिश की बूँदे,
देख वातावरण को मैं नाचने कूदने लगतीं,
कुछ दूर चल कर आता मोहल्ला कुम्हारों वाला,
कुम्हार की चाक में जब लगती मिट्टी,
तब घूमते चाक को देख मैं आनंद लेने लगतीं,
कुछ मिट्टी मांग कुम्हार से ,
कुछ खिलौने अपने लिए मैं बना लेती ,
मन भर जाता मिट्टी खेलकर मेरा,
तब इधर-उधर मैं देखने लगती ,
दिख जाती कहीं तितली कोई ,
उसे पकड़ने को उसके पीछे मैं दौड़ लगाती ,
दौड़ लगाकर जब थक जाती ,
हाथ ना आती तितली रानी,
तब किसी चबूतरे में बैठ सुस्ता मैं लेती ,
दिख जाती कच्ची सड़क पर बैल गाड़ियां,
कूदकर बैठ बैलगाड़ी में कुछ दूर मैं चली जाती,
जब मालूम होता चालक को वो मुझे डाट लगता,
उतारकर बैलगाड़ी से मुझे वो अपने रास्ते चल देता,
चंचल मन मेरा थोड़ा मायूस हो जाता,
मगर देख अपनी सखी का घर मन प्रफुल्लित हो उठता,
करता सखियों संग खेलने का मेरा मन,
तो मैं उनके घर चली जाती ,
सारी की सारी सखियों को एकत्रित कर एक स्थान पर,
फली-चोर ,बिल्लस ,गोटा ,लांगडी ,फुग्डी, खो-खो, छु-छुवाउल, डंडा-पचरंगा, गुल्ली-डंडा, परी-पत्थर, नदी-पहाड़, छुपन छुपाई ,गुड्डा गुड़िया की शादी और भी ढेर सारे खेल हम सखियाँ मिलकर खेला करती।
मन सबका जब खेल खेलकर भर जाता ,
तब आम, इमली के बाग में चुपके-चुपके हम सब जाते,
ढेर सारे आम और इमली की चोरी कर,
माली को देख हम दौड़ लगाते मगर पकड़ में हम न उनके आते ,
माली को चकमा देकर हम सब भाग जाते,
पूरा दिन खेल खेल में बीत जाता ,
भूख प्यास का भान मुझे ना होता ,
जब कानों में पड़ती पापा की साइकिल की घंटी की आवाज ,
पापा के डर से मैं वापस घर को आ जाती ,
बस्ता निकाल पापा के सामने पढ़ने को मैं बैठ जाती,
पढ़ते-पढ़ते मैं जब सो जाती ,
नींद से जगा कर माँ मुझे दो रोटियां खिलाती ,
फिर बिस्तर कर हमें माँ लोरी सुना कर सुलाती ।
गांव में बसा वो सुनहरा बचपन था मेरा,
जो शहर आने के बाद भी मुझे याद हैं आती ,
बिताया गांव में जो लम्हा था,
वो कभी-कभी होठों पर बन मुस्कान लोगों को नज़र हैं आती,
गांव का मीठा पानी, गांव की हवा,
गांव की माटी हमें आज भी हैं बुलाती ,
सखियां वो मेरे बचपन की, मुझे आज भी हैं याद आती।

written by आफरीन बानो

Insta id – @ansari_1318

 

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