Break-Up/YMPH-Daily-Writing-Challenge

16/12/2024 की प्रतियोगिता का विषय है “Break-up” हमसे जुड़े हुए प्रतिभावान कवियों के कविताओं को पढ़िए । प्रेम, डर, और अंधकार ऐसे कई मायने होंगे जो कवियों के दिल को भावुक रखते है । ऐसी भावुकता का हम आदर करते है और उनकी भावनाओं को निपुण बनाना ही संकल्प है हमारा । हम हर रोज किसी न किसी विषय पर अपने व्हाट्सएप्प ग्रुप में Daily Challenge प्रतियोगिता के माध्यम से लेखकों तथा कवियों को उनकी बातों को कलम तक आने का मौका देते है । और जो सबसे अच्छा लिखते हैं । आप उनकी लेख इस पेज पर पढ़ रहे है

The theme of the competition for 16/12/2024 is “Break-up”. Read the poems of the talented poets associated with us. Love, fear, and darkness are the many meanings that keep the hearts of poets emotional. We respect such sentiments and it is our resolve to make their feelings adept. Every day, we give an opportunity to writers and poets to put their thoughts to pen through the Daily Challenge competition in our WhatsApp group on different Topic. And those who write best. You are reading those article on this page.

Daily Writing Challenge Managed by Dr.Shruti

Break-up

–You never noticed my drizzling tear,
How often I tried to convey my fear.
‌–You made me jabbed to the wall of hope,
How badly I tried to flee off that deadly rope.
‌–You awarely pass over to my rapture,
How I felt unnoticed and being capture.
‌–You claim to be capable to heal,
How to express the pain,I forgot to feel
‌–You came to dazzle but turned it pale,
How winsome it could’ve been as only my tale.
‌–You wonder to hunt on the path I have gone,
How long would I choose to be played as a pawn.
‌–You at times made me brush off this worldly pain,
How lunaticly I danced off my burn in the rain.
‌–You were an alluring dream emerged to be my mistake.
How vapidly I dreamt this ,At last I chose to wake.
–You decide whether to be a nightmare or a dream,
How buckled I feel to get out of this rosy gleam.

-Prakrati

साख से पत्ते टूट रहे हैं
ठंड से चेहरा लाल हो गया है
आंखे सुख सी गई है
याद हमें इस कदर चुभ रही है
मानो कुछ टूट गया है
हां कुछ टूट गया है।।

Pragya
Jhapragya93

इसमें कसूर मुकद्दर का नहीं !
गर मैं चार दीवारों में खोना चाहता हूं
मुद्दतों की लाख कोशिशों के बाद
अब हार कर रोना चाहता हूं।
कहीं न कहीं कोई चूक , कमी , खता तो है मेरी भी,
कितनी बार हार मान कर पीछे हटा और बेवजह खुद से लड़ा हूं
अनगिनत बार अपनी गलतियां दूसरों पर थोपी!
फिर उन्हें याद कर , अपनी खताओं की माला गुथी है
बरसों से जो एक एक काला मोती समेटा है
अब , उन्हें बिखेर कर बस टूटना चाहता हूं ।।
टूटना चाहता हूं ऐसे
कि खुद को समेट ना सकूं
टूटना चाहता हूं –
कि खुद को परखना है
परखना है कि ;
अंदर उठे सैलाब को बहा कर
ये सागर शांत होगा या नहीं !
सागर के सीपों से श्वेत मोती मिलेगा या नहीं
मिलने पर , उन मोतियों की एक सुंदर झालर गुथ
अपने खोए अस्तित्व को मैं तलाशना चाहता हूं ।
इसमें कसूर मुकद्दर का नहीं !
गर मैं एक बार , बिखर कर –
खुद को समेटना चाहता हूं।।

© शिवांगी पाण्डेय

ineffable_sentiments_7

जितनी हिम्मत उस पल लगी थी
जिस पल तुम्हारा हाथ छोड़ना था
जब तुम कह रहे थे कि अब जाना होगा
उससे ज़्यादा हिम्मत लगती है
रोज़ तुम्हारे लौट आने की उम्मीद को संभालने में
जनता है ये दिल कि तुम नही आओगे
नही आओगे लौट कर इसको फिर से थाम लेने के लिए
मगर फिर भी रोज उम्मीद लगाए बैठा रहता है
पता नही क्यू ये बात मानता नहीं है
रोज़ टूटता है
बिखरता है तुम्हारे ना लौटने से
मगर फिर कही से हिम्मत बटोर लाता है
और खुद को समेट लेता है
फिर उम्मीद बांध लेता है तुम्हारे लौट आने की

सच कहूं तो
अब मैं थक गई हूं तुम्हारा इंतजार करते करते
मगर तुम्हारे बगैर ये जो बेचैनी रहती है
इसको एक ही चीज़ शांत करती है वो है
तुम्हारा इंतजार करना
तुम्हारा इंतजार अब सुकून देता है

तुम्हारे ना आने के सच से बेहतर है
तुम्हारे लौट आने की झूठी उम्मीद
ये झूठी उम्मीद ही तो है
जो अब मेरे साथ रहती है
तुम्हारे मुझे छोड़ कर चले जाने के बाद

@poo_etjaa

Break up

After the end, the world feels cold,
Like empty skies, no warmth to hold.
The hopes we built now turn to dust,
In shattered dreams, I lose my trust.

The flowers wilt, the tress stand bare,
No sunlight falls, just endless air,
The stars no longer shine so bright,
As all our colors fade to night.

Emotions fade, like distant sound,
In silence hearts, no love is found,
The world outside feels far away,
Like yesterday that couldn’t stay.

Once full of life, now lost and small,
Like echoes of a faded call,
In the wreck of what we knew,
Everything seems to break in two.

Insta I’d – eternal _echoespoetry. 6041

टूट चुका हूँ, अब यूँ परेशान न कर,
बिखरे हुए से उठने का फरमान न कर।

जो दरख्त लगाए थे हमने छाँव के लिए,
सूखे पेड़ों से फलों के अरमान न कर।

खोते हैं खुद को सब, झमेलों में पड़के यहाँ,
तू अपने होने का ज्यादा अभिमान न कर।

आदत सी हो गई है अब तो अकेलेपन की,
जान-पहचान, अनजान, फिर से अब जान न कर।

– गौरव कुमार ‘आरंभ’
Ig: @_aarambh

वो जो प्यारा सा रिश्ता था न मेरा तेरा,
आज भी उसे याद कर लेती हूं मैं,
तेरे साथ बिताए अच्चे लम्हो को याद कर भर आती है आँखें,
और उन झगड़ो को सोच हँस देती हूं मैं।।

आज भी तेरे सारे बेजान अल्फ़ाज़ों में पहचान है तेरी,
कोई पूछे तेरे बारे मे तो हौले से मुस्कुरा देती हूं मैं,

तेरा एहसास ही तो है जिसपे हक है मेरा,
कही न कही तू भी दुआ तो मांगता ही होगा मेरे लिए,नही भी, तो भी अपनी हर अरदास में शामिल रखती हूं मैं तुझे।।

सोचती हूँ तू जो था वो सच था,
या जो साथ किया मेरे वो झूठ,
तूने धोखा दिया था क्या मुझे?
या तेरा होना ही एक धोखा हुआ था?

अरे पगले, ये पैगाम कभी तुझ तक नई पहुंचेंगे मेरे,
देख आज भी अपने हर लफ्ज़ मै तेरे धोखे को जीती हूं मैं ।।

©Pbs ✍️
@alfaaz_dil_tak_

टूटना ही:सब है छूटना ही

जीवन के मोह को है टूटना ही,
क्यूंकि ज़िन्दगी का हाथ है छूटना ही,
तो क्यूं न कभी-कही-बैठु-सोचु,
लिखू अपने-आप को,
मन के भीतर-बाहर आ-जा रहे उतार-चढ़ाव को,
समझू कड़ी-कड़ी जोड़ कर,
जीवन के हर मोड़ पर,
क्यूं न रुकू-थमू-जानू हर एक बात,
सपनो में जो गुज़ार दी रात,
उन रातों में जो मोती पिरोए थे,
क्यूं न खोल-खोल पढू हर एक मोती को,
जानू सब कुछ अपने बारे में,
जो कश्ती कभी रहे गई थी किनारे पे,
क्यूं न उसे पुरे समुद्र में उतार दू,
जो रह गया है भीतर मेरे,
क्यूं न उसे एक-एक कर अपनी कविताओं में निखार दू,
लिखू अपने-आप को,
तो क्यूं न कभी-कही-बैठु-सोचु,
क्यूंकि ज़िन्दगी का हाथ है छूटना ही,
जीवन के मोह को है टूटना ही |

~गरिमा

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