29/09/2023 की प्रतियोगिता का विषय है “Childhood”। हमसे जुड़े हुए प्रतिभावान कवियों के कविताओं को पढ़िए । प्रेम, डर, और अंधकार ऐसे कई मायने होंगे जो कवियों के दिल को भावुक रखते है । ऐसी भावुकता का हम आदर करते है और उनकी भावनाओं को निपुण बनाना ही संकल्प है हमारा । हम हर रोज किसी न किसी विषय पर अपने व्हाट्सएप्प ग्रुप में Daily Challenge प्रतियोगिता के माध्यम से लेखकों तथा कवियों को उनकी बातों को कलम तक आने का मौका देते है । और जो सबसे अच्छा लिखते हैं । आप उनकी लेख इस पेज पर पढ़ रहे है
The theme of the competition for 29/09/2023 is “Childhood“. Read the poems of the talented poets associated with us. Love, fear, and darkness are the many meanings that keep the hearts of poets emotional. We respect such sentiments and it is our resolve to make their feelings adept. Every day, we give an opportunity to writers and poets to put their thoughts to pen through the Daily Challenge competition in our WhatsApp group on different Topic. And those who write best. You are reading those article on this page.
Childhood/बचपन
बचपन….
शैतानी करके खुद पर गर्व जब होता था ,
घर के चीज़ों को तोड़ने का रिवाज जब होता था ,
खाना खाने से ज्यादा गिराने में जब मजा आता था ,
डांट पड़ने पर भोली सी सूरत करके प्यार बटोरना आदत जब होती थी ,
नानी की कहानियां सुनना छुट्टियों में बस यही एक काम जब होता था ,
वक्त वहीं हसीन लगता था , जब जिंदगी में बचपन हुआ करता था !!!
Juhi Pusadkar
Insta:- feelings_that_expressed
बचपन की यादें
क्या ख़ूब आपने याद दिलाया है
जवानी पा के बचपन गवाया है
दिन वो कितने मौज मस्ती से थे
ग़ाफ़िल हम अपनी हस्ती से थे
न कोई बोझ था न कोई फ़िक्र
कहानियों में था परियों का ज़िक्र
बड़ो की बातों से बे नियाज़ थे हम
शादमां थे बहुत शाह-नवाज़ थे हम
अक़्ल के थोड़े कच्चे हुआ करते थे
जैसे भी थे बड़े अच्छे हुआ करते थे
न कुछ पाने की इच्छा न खोने का डर
बहुत अच्छा लगता था नानी का घर
वो दादी की नसीहते मां का दुलार
याद आता हैं पड़ोस का हार-शृंगार
कहाँ गयीं वो सब बे तुकी शरारतें
नदारत हुई बचपन वाली आदतें
होतीं थीं जब स्कूल की छुट्टियां
जम के होतीं थीं मौज मस्तियाँ
काश लौट आये फिर बचपन मेरा
सोंधी खुशबू गांव का मस्कन मेरा
…लईक़ अहमद अंसारी….
“My days without papa”
In childhood’s tender, innocent embrace,
A journey starts with an empty space.
A Papa’s absence, a void profound,
Yet love and strength in the heart are found.
In fields of play and stories at night,
A Maa’s love, a guiding light.
Though shadows cast by an absent name,
In a Maa’s arms, love’s eternal flame.
Through trials and tribulations, we roam,
With dreams and hopes to call our own.
Though the path may be steep and long,
In the heart of a child, resilience is strong.
No Papa’s presence, but still we thrive,
In the face of challenges, we will survive.
For within our souls, a spirit unbowed,
In childhood’s journey, we’re strong and proud.
Though the absence of a Papa’s embrace,
Can leave a mark, a lifelong trace,
Childhood’s without, but love remains,
In our hearts, where strength sustains.
So let us cherish the bonds we hold,
With the love of maa’s , priceless gold.
For in the absence, we find our way,
Through childhood’s without, we’ll shine each day.
Tanisha Bhattacharjee
बचपन
बचपन की वो यादें आज बहुत याद आती है,
अपनी मस्ती में रहना मस्ती में खेलना उस समय ना टेंशन पढ़ाई की ना ही काम की ,नये नये दोस्त बनाना
ना दोस्ती में कोई अन्तर देखना
समय की कोई पाबन्दी नहीं,जब मन किया सो गए
जब मन किया उठ गए, वो छोटी छोटी बातो पर रुठ कर अपनी बातें मनवाना ,वो दिन भी क्या दिन थे यारो .जो बहुत याद आता है,गर्मियों की छुट्टियों के वो दिन जिनका बेसब्री से इंतजार रहता था वो मामा का घर बहुत याद आता है,
बचपन की हर याद अब बस यादें बन कर रह गई हैं,
बचपन की मस्तियाँ और दोस्त बहुत याद बहुत याद आतें हैं
यारों बचपन इतना प्यारा था कि उस को शब्दों में बयां किया जा सकता नहीं ,अब लगता है काश कोई फिर से लौटा दे वो बचपन के दिन ,
मन करता है फिर से उस बचपन में चली जांऊ और लौट कर कभी वापस ना आऊं !!
“शिखा पाल”
“Bachpan’s Golden Tapestry”
In bachpan’s golden, carefree days of yore,
Where laughter echoed, innocence did soar.
A world of wonder, a canvas yet unpainted,
In the playground’s joy, our spirits acquainted.
The giggles of hide-and-seek, so pure,
Underneath the azure sky, we’d endure.
Climbing trees, scraping knees, fearless and bold,
In bachpan’s embrace, we never grew old.
Oh, the taste of candies, so sweet and divine,
In the realm of imagination, we’d often dine.
Paper boats sailed in puddles, dreams set free,
In bachpan’s embrace, we danced in glee.
Through stories told by the moon’s soft glow,
Innocence and wonder would eternally flow.
Bachpan’s memories, like treasures we keep,
In our hearts forever, where dreams run deep.
Though time has passed, and we’ve grown so tall,
Bachpan’s spirit in us, it will never fall.
For in those cherished moments, we’re forever spun,
In the tapestry of life, bachpan’s the golden sun.
Ananya
आज कल के बच्चों का बचपन कितना अधूरा रह गया है, या यूं कहें बचपन की उम्र बहुत छोटी हो गई है।
उनकी मासूमियत यूं गायब होती है जैसे ओस की बूंदें हो, दरअसल बचपन को सहजने के लिए न मां बाप के पास वक्त है और न ही दादा दादी का सानिध्य।
Suman Kumar
“My Childhood in Rain”
My little Pixie! It’s been late
It’s time to hit the Hay..
Let Mumma reveal New Tales..
Come Closer.. my Nightingale!!
“Her childhood “on..a Fairy tale..
“The King and the Drum”..
On a Funny Folktale..
Which one..Shall I proceed?
Mumma! Say on “Your childhood”
Intresting! Pixie! Close your Eyes!
I will tell you Something..
On Your Mumma’s Childhood..
About the Tale of Monsoon..!!
As a kid.. I was fond of Rain.
Will pan out, To Open the Doors..
Melting on the Fragrance To core.
Of the Soil, before It’s rain outside..
Amazingly, on the Slanding Rain..
Relishing the Wind and Blows..
In Carving of Most prided..
South Indian Starter…
To keep myself Warmer..
Hiding from our Grand Parents
For relishing the Exclusive Starters..
Was the most fantastic Job
Of “My Childhood in Rain”
Alright! She slept off….!!
©️ Santhoshi Choradia
Childhood
I was wearing my little shoes
To hurriedly go to school
My hair back then were a mess
Curiosity was always written on my face
Mom used to dress me up in fancy dresses
She says I look like a beauty princess
I drew art, I read stories
I made a castle of sand and made many memories
Now, I don’t remember them all
My mom has them painted on our home wall
Lazy bed mornings and happy smiles
Untimely dances and purposeless cries.
@sid20hi on Instagram
Siddhi Mandlik
जाने कब हम इतने बड़े हो गए
बचपन के खिलौने ना जाने कहा खो गए
अब तो बस उन यादों के बोझ में दबे है जवानी के दिन
ना जाने किस खुशी के इंतजार में हैं जवानी के दिन!!
Dr. Vandana Tiwari
Insta-@dr.tripathi276
एक वो भी कहा ज़माना था
मै बे – ब्लेड का दीवाना था
कोई टेंशन नहीं थी दिमाग में
बस हर वक़्त मुस्कुराना था
एक के पीछे भागना नहीं था
रोज़ नया सपना सजाना था
जेब में नोट तो एक नहीं था
पर हां कंचो का खजाना था
अब मै बड़ा होकर सोचता हूँ
वो बचपन कितना सुहाना था
आयुष जैन
ajaayu_13
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