24/07/2024 की प्रतियोगिता का विषय है “Desire” हमसे जुड़े हुए प्रतिभावान कवियों के कविताओं को पढ़िए । प्रेम, डर, और अंधकार ऐसे कई मायने होंगे जो कवियों के दिल को भावुक रखते है । ऐसी भावुकता का हम आदर करते है और उनकी भावनाओं को निपुण बनाना ही संकल्प है हमारा । हम हर रोज किसी न किसी विषय पर अपने व्हाट्सएप्प ग्रुप में Daily Challenge प्रतियोगिता के माध्यम से लेखकों तथा कवियों को उनकी बातों को कलम तक आने का मौका देते है । और जो सबसे अच्छा लिखते हैं । आप उनकी लेख इस पेज पर पढ़ रहे है
The theme of the competition for 24/07/2024 is “Desire”. Read the poems of the talented poets associated with us. Love, fear, and darkness are the many meanings that keep the hearts of poets emotional. We respect such sentiments and it is our resolve to make their feelings adept. Every day, we give an opportunity to writers and poets to put their thoughts to pen through the Daily Challenge competition in our WhatsApp group on different Topic. And those who write best. You are reading those article on this page.
Desire
चाहत (तुम्हें पाने की):-
तुम्हे पाने की चाहत में,
बटकते रहे सदियों से,
पर जब तुम्हें पाने का सोचा,
कम्बख्त वक़्त हो गया बेवफ़ा,
यूँ तो हम वाक़िफ़ नहीं,
इन सारी बातों से,
पर तुमसे मिलना शायद इत्तेफाक था,
कोशिश तो बहुत की तुम्हें हासिल करने की,
पर किस्मत में हमारा मिलना,
शायद यहीं तक था,
मेरा इरादा बेवफ़ाई करने का न था,
पर क्या करू शायद वक़्त खफ़ा था,
कसम मेरी चाहत की,
ऐसा दर्द महसूस हो रहा था,
जैसे मैने किसी अपने को खोया था,
यही दुआ करेगे रब से,
की तुम्हें मेरी चाहत पसंद आये ज़्यादा सबसे…..
_Kashish Chandnani
तुझे पाने की चाहत में
अपनी चाहत को भुला दिया
चर्चा है इस शहर में
दीवाने हैं लोग मेरे ,
तेरे इश्क़ ने अपना दीवाना
मुझे बना दिया ।
किसी को भी न चाहो
इस कदर “मधु “
तुम्हारी जान को अपनी जान बना लिया ।
Madhu Bhasin
Insta Id
madhu. bhasin.564
चाहत
मन का चाहा यदि मिल जाता,
तो फिर यह संसार न होता।
हार न होती, जीत न होती,
सुख दु:ख का व्यापार न होता।
रोग-शोक-संताप न होता,
लगा पुण्य से पाप न होता।
क्यों छलकाते अश्रु नयन ये,
जो उर में परिताप न होता।
स्नेह स्वार्थ संयुक्त न होते,
कोई किसी पर भार न होता।
मन का चाहा यदि मिल जाता,
तो फिर यह संसार न होता।
नयनों से नयनों का मिलना,
शीत श्वांस, अन्तस्तल जलना।
तपती हुई चांदनी लगती,
तारे गिनना और तड़पना।
मनुहारों की चिता न जलती,
हुआ किसी से प्यार न होता।
मन का चाहा यदि मिल जाता,
तो फिर यह संसार न होता।
कांटों में ही फूल न खिलते,
जो अपनों से नहीं बिछुड़ते।
शूल न चुभते जो अंतर में,
व्यथा कथा हम कैसे कहते।
भरा पुरा यह सारा जग फिर,
केवल कारागार न होता।
मन का चाहा यदि मिल जाता,
तो फिर यह संसार न होता।
अपनों की अपनों से घातें,
कुलिश न बनकर लगती बातें।
जीवन को नीरस क्यों करते,
रोते दिवस, सिसकती रातें।
स्वप्न सुनहले, जो न टूटते,
जीवन यह असिधार न होता।
मन का चाहा, यदि मिल जाता,
तो फिर यह संसार न होता।
सुशील चन्द्र बाजपेयी,
लखनऊ (उ.प्र.)
Desire
We all desire a lot from life
And our wants and desires are never ending
Desires will never end throughout the life
Unless you are alive
A burning desire leds a loud full success
Desire are the burning dreams of our mind
The will of our heart
It will never end
A poor man desires to have a full meal in a day
A vendor desires that a lot of customers visits them and buy their material
A teacher desires that their student achieve
something in life
Parents desires that their child may remain always happy
Grandparents desires that their family may never be seperated
Anushka Pandey
Comments are closed.