Dilemma/YMPH-Daily-Writing-Challenge

18/11/2024 की प्रतियोगिता का विषय है “Dilemma” हमसे जुड़े हुए प्रतिभावान कवियों के कविताओं को पढ़िए । प्रेम, डर, और अंधकार ऐसे कई मायने होंगे जो कवियों के दिल को भावुक रखते है । ऐसी भावुकता का हम आदर करते है और उनकी भावनाओं को निपुण बनाना ही संकल्प है हमारा । हम हर रोज किसी न किसी विषय पर अपने व्हाट्सएप्प ग्रुप में Daily Challenge प्रतियोगिता के माध्यम से लेखकों तथा कवियों को उनकी बातों को कलम तक आने का मौका देते है । और जो सबसे अच्छा लिखते हैं । आप उनकी लेख इस पेज पर पढ़ रहे है

The theme of the competition for 18/11/2024 is “Dilemma”. Read the poems of the talented poets associated with us. Love, fear, and darkness are the many meanings that keep the hearts of poets emotional. We respect such sentiments and it is our resolve to make their feelings adept. Every day, we give an opportunity to writers and poets to put their thoughts to pen through the Daily Challenge competition in our WhatsApp group on different Topic. And those who write best. You are reading those article on this page.

Daily Writing Challenge Managed by Dr.Shruti

Dilemma

ये कैसी है कशमकश।

मन का द्वंद्व कहे कुछ और,
दिल की बातें अलग ठौर।
सपने ऊँचे, राहें कठिन,
हर कदम पर संघर्ष गहन।

एक ओर इच्छा, दूसरी ओर डर,
कैसे सुलझाऊं यह उलझन का सफर।
हिम्मत भी है, पर संशय भारी,
जाने कौन सी राह हो हमारी।

पर उम्मीद का दीप जलता रहे,
मन की कशमकश थमती रहे।

Jeetal shah ✍️
Jeetalshah77

कश्मकश

प्रेम परिभाषा या अभिलाषा,
किस डगर की राह बुने,
कहा चोट खाई कहां इश्क हुआ,
किसे मिल का पत्थर कहें,
ये कश्मकश है कैसी इस हृदय पर,
गैर कहें या ग़ैरतमंद कह दें।

तुम अपने से लगते तो गैर नहीं होते,
गैर हो गए तो अपनों सा नहीं मिल पाए,
तुमसे इश्क एक खता मैं कह देता,
अगर एक तरफा होता तो,
ये गुनाह तो दोनों ने मिल कर किया था,
फिर कश्मकश में कहकशा कैसे हो गया।

आओ फिर मिलेंगे मन के मीत फलक पर,
इस जहां में जिम्मेदारी निभा लेते है,
इश्क एहसासो से निभाई जाती है,
जब मिलेंगे निगाहों से निभा लेंगे,
सरे आम रिश्तों की किताब रख लेंगे,
मन से सारे कश्मकश मिटा कर एक होंगे।

-Sumit Kumar Bhaskar

कश्मकश
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कश्मकश में बैठी वो, कहने को गुब्बर भरा
लड़ रही अंतरमन में,और  राहों में अंगार पड़ा

दिए हैं तुमने पंख भले, आसमां क्यों छीनता जाता है
अकेले बढ़ती आगे वो, पर मन बहुत घबराता है

दायरे में सिमटती जाती है, पग पीछे खिंचती जाती है
जब देखती क्षत-विक्षत कली, वो कांप कहीं छुप जाती है

साबित किया खुद को उसने, तब आजादी को पाया था
पर अब उसे एहसास जताया, ये सब बिल्कुल ज़ाया था

इस मोड़ पर अब खड़ी है वो, पग आगे धरे या खींच ले
साहस बटोर बस चल पड़े या, बस यहीं पर आंखें मींच ले

हे मानव सुन, वो पूछती है, क्या यही मानवता रह जाएगी
अस्मिता के खातिर बेटी अब,अपनी ख्वाहिशें ना कह पाएगी
अपनी ख्वाहिशें…ना कह पाएगी……..

Saritta Garii
Insta I’d  – sarita_writes

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