16/09/2024 की प्रतियोगिता का विषय है “Feminism” हमसे जुड़े हुए प्रतिभावान कवियों के कविताओं को पढ़िए । प्रेम, डर, और अंधकार ऐसे कई मायने होंगे जो कवियों के दिल को भावुक रखते है । ऐसी भावुकता का हम आदर करते है और उनकी भावनाओं को निपुण बनाना ही संकल्प है हमारा । हम हर रोज किसी न किसी विषय पर अपने व्हाट्सएप्प ग्रुप में Daily Challenge प्रतियोगिता के माध्यम से लेखकों तथा कवियों को उनकी बातों को कलम तक आने का मौका देते है । और जो सबसे अच्छा लिखते हैं । आप उनकी लेख इस पेज पर पढ़ रहे है
The theme of the competition for 16/09/2024 is “Feminism”. Read the poems of the talented poets associated with us. Love, fear, and darkness are the many meanings that keep the hearts of poets emotional. We respect such sentiments and it is our resolve to make their feelings adept. Every day, we give an opportunity to writers and poets to put their thoughts to pen through the Daily Challenge competition in our WhatsApp group on different Topic. And those who write best. You are reading those article on this page.
Feminism
जब जब ज़माने ने उसे कमज़ोर समझा,
तब तब उसने अपनी ताक़त से हैरान कर दिया।
हर मुश्किल को चीर कर आगे बढ़ी
उसने हर बाधा को अपनी हिम्मत से पार दिया।
Sakshi Singh
jas_baat_e_dil
इंसानियत तक तो पहुँच
नारीवाद का शोर क्यों
इंसान बस समझो
नारी को तुम न समझो
अभिभावक ही वस्तु समझते
विवाहित कर दान में दे देते
कहाँ से शुरु लड़ाई करुं
कन्या से नारी के सफ़र में
किस पर विश्वास करुं।
Shilpa Bhatnagar
नारिवाद
महिलाएं के खिलाफ सदियों से हो,
रहे थे देखो अत्याचार वो सिर्फ,
घर में रह कर काम करें ना जाएं बाहर,
यह थे सबके विचार ,
वो जीवन जीएं किसी और के इच्छा अनुसार यही थी उनसे उम्मीद,
लेकिन नारीवाद ने महिलाओं को उनके हक के बारे में अवगत कराया,
वो कितनी काबिल हैं उन्हें इस बात,
का एहसास दिलाया,
नारीवाद समान अवसर के लिए था शुरू हुआ लेकिन कुछ सालों में,
इस आंदोलन ने कुछ और ही रुप ले, लिया कुछ और ही रुप ले लिया ।
Kadambari gupta
Insta -id , kadambari.gupta
Feminism…
वो माँ काली – जब आया बात उसके परिवार पे!
वो माँ सरस्वती – जब बात आये ज्ञान की !
वो माँ लक्ष्मी – जब बात आये घर की तरक्की की!
वो माँ अन्नपूर्णा – जब बात आये विभन प्रकार के बोग और भूखे भक्त की !
वो माँ हमारी और आपकी जो है सबकी प्रतिनिधि!!
Hetal Tyagi
Feminism
Feminism is a positive attitude,
If taken in correct form for the right purposes,
In today’s world feminism is only to say,
But in reality mail ego hinders,
Her dignity and respect by his mis behaviour,
And foul treatment to her even today.
The evil eyes chased her weather,
She is in full clothes and serves as a life saviour .
Only to feed his sick ego and ,
Spoil her essence of politeness and bravery,
To face the harsh situations by her,
Calmly and composed ly
Thus feminism is not just a word,
But a essence of her values and respect.
To feel proud about , it’s a tribute to her.
Parul jain
@pj923985
Feminism
We speak of feminism, so bold and so bright,
With radical thoughts that shine in the light.
But when it’s time to act and make a stand,
We cling to the chains in this patriarchal land.
A woman’s sacrifice, on marriage’s fire,
To please her in-laws, to meet their desire.
She’s teased in the streets on her way back home,
Or scarred for life if she dares to roam.
What a world of hypocrisy we live in today,
Worshiping goddesses with fervor, we pray.
Yet the girl child is silenced before she’s born,
Or left to the shadows, abandoned, forlorn.
But speak of feminism? Oh, they’ll fill the stage,
With lectures and words that run page after page.
Dr. Shubha Mukherjee
सुनो गौरैया नहीं बाज हूं मैं,
कहां सिसकियां हूं आवाज हूं मैं |
मेरे विस्तृत पंखों की छांव को तो देखो,
धरती पर चलती आकाश हूं मैं |
दे दाना पानी तुम मुझे पकड़ सकते नहीं ,
स्वर्ण पिंजरे में रख जकड़ सकते नहीं ,
कैद रहना मैंने सीखा ही कहां ,
इन हवाओं से व्याप्त आजाद हूं मैं |
मेरा जन्म भी हुआ आसमां के लिए ,
मुझमें है कुछ नशा दास्तां के लिए ,
मेरे इन परों में गजब का है बल ,
नहीं रेंगना परवाज हूं मैं |
मैं नहीं महज आंगन सजाने के लिए ,
सज संवर नाज नखरे दिखाने के लिए ,
मैं आई यहां कुछ पाने के लिए ,
ना रख कदमों तले सुन ताज हूं मैं |
मुझे नापना है सागरों को अभी ,
झांकना है मुझे बादलों पर अभी ,
लगानी है होड़ इन तूफानों से ,
टकराना है अभी कई चट्टानों से ,
नहीं मैं अंत नहीं आगाज़ हूं मैं |
टूट जाने दो पंख मेरे टूटे अगर ,
यह लय सांस की मुझसे रूठे अगर ,
थक हार कर बैठना मुझे गवारा नहीं ,
बेबाक हूं कहां लाज हूं मैं |
सुनो गौरैया नहीं बाज हूं मैं,
कहां सिसकियां हूं आवाज हूं मैं |
Rakhi
मैं रोई ,चीखी , चिल्लाई
हाथ जोड़े , गिड़गिड़ाई
बेरहम ने न दया दिखाई
क्योंकि मैं एक लड़कीं हूँ…..
मारा-पीटा आँखे फोड़ी
नोंचा-खींचा उंगली तोड़ी
बेपनाह दर्द से मैं तड़पी हूँ
क्योंकि मैं एक लड़कीं हूँ….
जिस जगह देती थी सेवा
वही बन गई जानलेवा
मैं कहीं भी महफूज नही हूँ
क्योंकि मैं एक लड़की हूँ….
मेरी मौत पर शोक मनेगा
हुजूम सड़को पर उमड़ेगा
इंसाफ दो ,इंसाफ़ दो…
यह नारा चहुँओर गूँजेगा
मेरा नाम सुर्खियों में रहेगा
फिर कहीं गुम हो जाएगा
क्योंकि मैं एक लड़की हूँ….
वैदेही वैष्णव
Comments are closed.