“Open Theme”– YMPH DAILY CHALLENGE

14/06/2021 से 16/06/2021 की प्रतियोगिता को “Open Theme(लेखक अपने अनुसार किसी भी विषय पे लिख सकते है” रखा गया है। हमसे जुड़े हुए प्रतिभावान कवियों के कविताओं को पढ़िए । प्रेम, डर, और अंधकार ऐसे कई मायने होंगे जो कवियों के दिल को भावुक रखते है । ऐसी भावुकता का हम आदर करते है और उनकी भावनाओं को निपुण बनाना ही संकल्प है हमारा । हम हर रोज किसी न किसी विषय पर अपने व्हाट्सएप्प ग्रुप में Daily Challenge प्रतियोगिता के माध्यम से लेखकों तथा कवियों को उनकी बातों को कलम तक आने का मौका देते है । और जो सबसे अच्छा लिखते हैं । आप उनकी लेख इस पेज पर पढ़ रहे है

अगर आप भी एक कवि या कहानीकार है और अपनी रचना को पन्नो पर उतारना चाहते है तो हमारा व्हाट्सएप्प ग्रुप अभी जॉइन कीजिये ।

First

Sakshi Tomar

“तेजाब”

झुलस चुकी थी आँखे, त्वचा से चिपक गयी थी जैसे
न होठों ने साथ दिया , न जबान कुछ बोलने लायक थी

फिर भी रूह ने चीखने में कोई कमी नही रखी
संवेदना की आस में खामोश था ये दिल

उलझी हुई हथेली पर वो नफरत के छींटे डाल गया
और मेरी आबरू उसने सरेआम झुलसा दी

ऐसा नही था उस वक़्त कोई था नही नजदीक मे
मगर मेरी तसवीर खींचने में मशरूफ थे जरा

और उस दिन लगा क्या मैं मुलाजिम हूँ किसीकी
क्यों मोहबत के नाम पर इस आवारगी की हवा चल रही है ..!!

Instagram-Sakshitomar_17

Kavitha Prabhakaran

We sat intact ,alone on the corners of benched sand dunes
Far away from tantrums of the beach and dwellers
Chatted long of the past present and future..
With no voice overheard, any eyes unnoticed
Perched together with hand in hand
Heart on heart facing head to head
Viewed ocean’s happy and furious tides
Thrilled people with rhythms of waves
But silently in a world our own
Cherished our intimacy….
Embraced our lively lovely togetherness
Me and my loneliness !!

Instagram ID: @kaaa.wee

Second

Sweta Roy

मैं मजदूर हूँ मैं हारना नहीं जानता

मैं मजदूर हूँ मैं हारना नहीं जानता
जो भी काम मिला उसे नकारना नहीं जानता
तपती रेत हो या धूप से झुलसती आँधी
मैं वो फ़ौलाद हूँ जो मौसम की तपिश से झुकना नहीं जानता

बड़े बनने की चाहत या शोहरत ऐशो
-आराम की हमें आदत नहीं
धरती पर सूती चादर ही बिछा सो
लेता हूँ
कभी फुटपाथ तो कभी रैन बसेरो में
अपने जीवन का सुकून खोज लेता हूँ
सूखी रोटी, दाल ,चावल ही मेरे लिए
लजीज़ पकवान है
क्योंकि पेट भरने का जीवन में यही मेरे लिए आधार है
कभी लोगों के चार बातें भी हँस कर
सह लेता हूँ
पर अपनी मेहनत से ही अपने परिवार
का पेट भरता हूँ
मैं मजदूर हूँ मैं हारना नहीं जानता।

Insta ID-roys17924

Third

Priyanka Nigam

“रिक्शावाला”
ओढ़ कर आसमाँ की चादर,
सिर रख कर धरा पर।
सो गया वो सुकूँ की नींद,
इस कड़कड़ाती ठंड में भी।
उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी,
क्योंकि आज उसके बच्चे भूखे नही सोए थे।
कल फिर उसे इसी सुकूँ की तलाश में निकलना होगा,
फिर से खिलखिलाती मुस्कान को बनाये रखने के लिए उसे ठंड में भी ठिठुरकर जोखिमों को उठाना होगा।।।

Insta id- Priyankanigam6

Comments are closed.

Scroll to Top
Scroll to Top