A Man and Woman Wearing Angel Costumes

Good Over Evil/YMPH-Daily-Writing-Challenge

13/10/2024 की प्रतियोगिता का विषय है “Good Over Evil” हमसे जुड़े हुए प्रतिभावान कवियों के कविताओं को पढ़िए । प्रेम, डर, और अंधकार ऐसे कई मायने होंगे जो कवियों के दिल को भावुक रखते है । ऐसी भावुकता का हम आदर करते है और उनकी भावनाओं को निपुण बनाना ही संकल्प है हमारा । हम हर रोज किसी न किसी विषय पर अपने व्हाट्सएप्प ग्रुप में Daily Challenge प्रतियोगिता के माध्यम से लेखकों तथा कवियों को उनकी बातों को कलम तक आने का मौका देते है । और जो सबसे अच्छा लिखते हैं । आप उनकी लेख इस पेज पर पढ़ रहे है

The theme of the competition for 13/10/2024 is “Good Over Evil”. Read the poems of the talented poets associated with us. Love, fear, and darkness are the many meanings that keep the hearts of poets emotional. We respect such sentiments and it is our resolve to make their feelings adept. Every day, we give an opportunity to writers and poets to put their thoughts to pen through the Daily Challenge competition in our WhatsApp group on different Topic. And those who write best. You are reading those article on this page.

Good Over Evil

बुराई पर अच्छाई की जीत।

बुराई पर अच्छाई की जीत आज कठिन लगती है,
बुराई पर अच्छाई की जीत मुमकिन नहीं लगती है।
ऊपर से लेकर नीचे तक ये भ्रष्टाचार इतना हो गया,
सच्चाई और अच्छाई की जीत मुश्किल ये लगती है।

आज भ्रष्टाचार व बुराई का बहुत ज़्यादा बोलबाला,
आज अच्छाई व सच्चाई का मुँह भी हो रहा काला।
हर चीज़ में मिलावट इतनी ज़्यादा होने अब लगी है,
इंसान को पैसे कमाने तो सभी हदें पार करने लगे है।

नारी की इज़्ज़त बिल्कुल भी महफूज़ आज तो ना है,
चाहे वो किसी भी उम्र की ये महफूज़ आज तो ना है।
लगता है अब घनघोर कलयुग ही तो चल रहा दोस्तों,
इंसान बन शैतान और हैवान अत्याचार करने लगा है।

ऊपर से लेकर नीचे तक सब पाप करते जा रहे आज,
ईमानदारी का त्याग कर बेईमानी करते जा रहे आज।
अगर पूरा देश फ़िर से ग़ुलाम बनना चाहता नहीं अब,
तो आगे बढ़कर हम सभी को राम राज्य बनाना आज।

Sumit Malhotra
Hisar Haryana
@iam_sumitsirg

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं स्वयं प्रकट होता हूँ। श्लोक में, भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि वह हमेशा लोगों की रक्षा करेंगे और सही मूल्यों को बनाए रखने के लिए बुरी ताकतों को हराएंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि बुरे इरादों पर अच्छे कार्यों की जीत हो।

अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि लोग पाप क्यों करते हैं या दूसरों को चोट पहुँचाने का प्रयास क्यों करते हैं, तब भी जब वे बुरे इंसान के रूप में पैदा नहीं हुए हैं या जीवन की वास्तविकता को समझने के लिए तैयार नहीं हैं, जैसे कि किसी बल द्वारा या उन्हें बताने वाले किसी व्यक्ति द्वारा है। भगवान कृष्ण बताते हैं कि वासना और दुष्ट इरादे ही पापी सर्वभक्षी शत्रु हैं। धुएं से ढकी आग या धूल से ढके दर्पण के समान, इच्छा व्यक्ति के ज्ञान को ढक देती है और बुद्धि को भ्रमित कर देती है। अंत में यह एक भ्रम पैदा करता है, श्री कृष्ण अर्जुन को सलाह देते हैं कि इंद्रियों, मन और बुद्धि को नियंत्रित करके – व्यक्ति ‘इच्छा’ नामक इस शत्रु को मार सकता है, जो पाप का अवतार है। बुराई केवल अच्छाई या भगवान की अनुपस्थिति है । जब भी हम किसी बुरी या बुरी स्थिति में अच्छाई का संचार करते हैं तो हम उसमें ईश्वर की उपस्थिति लाते हैं। केवल काम से दूर रहने से कर्म प्रतिक्रियाओं से मुक्ति नहीं मिल सकती है, न ही केवल शारीरिक त्याग से ज्ञान की पूर्णता प्राप्त हो सकती है। बुराई पर अच्छाई तभी समाप्त होती है जब हम उन लोगों के प्रति अपने इरादों को जलाएं जो उन्हें चोट पहुंचाने, उन्हें बदनाम करने, गैर धार्मिक कार्यों में शामिल होने और फिर उन्हें सही ठहराने की हमारी तीव्र इच्छा को मजबूर करते हैं। यह तब होता है जब कोई व्यक्ति अपने दोषों का एहसास करता है और भगवान के मंदिर में माफी मांगता है। नेक कार्य और अच्छे कर्म अंततः हानिकारक या दुर्भावनापूर्ण कार्यों की तुलना में अधिक सफल होंगे। इसका मतलब यह है कि दयालुता, करुणा, नैतिकता और न्याय के कार्य अंततः क्रूरता, अन्याय और अनैतिकता के कार्यों से अधिक सफल होंगे। इस प्रकार व्यक्ति को अपने निर्धारित कर्म कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, क्योंकि कर्म निष्क्रियता से श्रेष्ठ है।

महिषासुर को देवी दुर्गा ने अपने त्रिशूल से मार डाला जिसके बाद उन्हें महिषासुरमर्दिनी “महिषासुर का वध करने वाली” की उपाधि मिली। महिषासुर के पास इच्छानुसार रूप बदलने की क्षमता थी, इस शक्ति का उपयोग उसने बाद में स्वर्ग में देवताओं से युद्ध करने के लिए किया। महिषासुर और उसके राक्षसों की सेना बहुत शक्तिशाली हो गई थी। देवताओं का कोई मुकाबला नहीं था और जल्द ही उन्हें स्वर्ग से बाहर निकाल दिया गया। एक शक्तिशाली प्रकाश उभरा पवित्र त्रिमूर्ति और देवों के चेहरों से देवी दुर्गा का स्त्री रूप बनाया गया। उनकी दस भुजाओं में से प्रत्येक में देवताओं के एक हथियार थे – विष्णु का चक्र, शिव का त्रिशूल और ब्रह्मा का कमंडलु। देवी दुर्गा के वाहन के रूप में एक शेर को चुना गया। एक भयंकर युद्ध छिड़ गया। महिषासुर ने सबसे पहले देवी दुर्गा से मुकाबला करने के लिए चंड, मुंडा और रक्तबीज जैसे शक्तिशाली राक्षसों को भेजा लेकिन अंत में अच्छाई की जीत हुई।

“दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशीष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।”..

” अंत में काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, व्यवहार जैसे सभी दोष शांत हो जाते हैं और सत्य अखंडित के रूप में बुराई पर अच्छाई की जीत होती है और जब यह अच्छाई सामने आती है, तो यह प्रकृति के मूल नियम को मजबूत करती है: “प्रत्येक क्रिया की समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है”…

सत्य हमेशा अंत में सामने आता है, किसी सत्यापन की आवश्यकता नहीं होती है और अच्छाई हमेशा अविभाजित होती है। एक विशिष्ट समय में मूल्य और सत्य दूसरे समय पर लागू नहीं हो सकते हैं, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को एक नई नैतिकता की नींव रखने के लिए अपना सत्य खोजना होगा, जिसमें शामिल हैं क्या अच्छा है और क्या बुरा है, इसका भेद करना और उसके अनुसार अपना रास्ता तर्कसंगतता से चुनना, न कि लापरवाही से।

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड गजाधिपते ।
रिपु गजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते ।।
निजभुज दण्ड निपतित खण्ड विपातित मुंड भटाधिपते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।

-©®डॉ माया📖

बुराई पर अच्छाई की जीत

मेरे मीत..!
निश्चित ही..आज के छद्म, छलावे के दौर में डगमगा सकते हैं तुम्हारे विश्वासों के कदम..
लग सकता है तुम्हें असंभव सा..
आज के युग में ..
बुराई पर अच्छाई की जीत का हो पाना..!
किंतु ,याद रखो मीत..
बुराई लाख हो बलशाली
लाख आकर्षक हो..उसे पराजित होना ही पड़ेगा एकदिन..!
सच पूछो..! तो बुराई का अपना कुछ वजूद नहीं.. बस,अच्छाई की अनुपस्थिति ही बुराई है।
ठीक वैसे जैसे ..
अंधेरा और कुछ नहीं मात्र प्रकाश की अनुपस्थिति का नाम है..!
अस्तित्व तो प्रकाश का है..
अस्तित्व तो अच्छाई का है..
इसलिए.. अंधेरा और बुराई बस परछाई हैं।
धोखा हैं..! तुम चलते रहो अपने अस्तित्व के साथ..अपनी अच्छाई लिए..बुराई तुम्हारे पदचापों की आहट सुन स्वत: चली जाएगी गर्त में..!
तुम खिल उठोगे फूलों से
जगमगा उठोगे दीपकों से..
बन जाओगे दीपावली सरीखे..
अपनी उजली दास्तानों के साथ
तुम्हारी कहानी कहेगी सुगंधित पवन..
ज़िंदगी को आगे बढ़ाते हुए।
अच्छाई का परचम लहराते हुए।
बस,तुम डगमगाना मत मेरे मीत..!
चलते रहना अच्छाई की राह पर..!
अनवरत..!

डॉ शशि जोशी ’शशी’

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