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जब कभी लौट कर जाती हूं, घर…. आंगन, खेत, छप्पर…….
दौड़कर लिपट जाते हैं
और, मैं दौड़ चली जाती हूं उस कमरे में
जहां आप बैठकर मुझसे ढेर सारी बातें किया करते थे
आँसू भर जाते हैं इन आंखों में
जब मुझे बालमन से की गई हुई
कुछ नादानियां याद आती है…..
छुटपन बिखरा के सामने
एक बार फिर आपका चेहरा मेरे सामने आ जाता है
ऐसा लगता है आप पूछते हैं मुझसे कैसी हो? कहानी अच्छी तो है ना बेटा जी
उदास हो जाती हूँ,
क्या कहूं??
मुझे आपके साथ मेला घूमने वाला वो पल याद आ जाता है
वो मंदिर जाना ,कुछ भी हो मेरे जन्मदिन दिवस पर आपका आ जाना
रात्रि के आधी पहर को आपका मिलने आना,
सारी बताई हुई कहानियां याद आ जाती हैं
सब कुछ ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हैं
मैं एकटक तक आपकी तस्वीर को देखती रहती हूं
मेरे आंखों से आंसुओं की धारा फूट पड़ती है
मेरे आर्तनाद को सुनने वाला कोई नहीं होता
पापा,आप आज भी बहुत याद आते हो ।
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